म्यांमार के मामले को लेकर भारत सरकार के लिए एक द्दंद की स्थित बन रही है. जहां कई सामरिक कारणों से वहां हुए तख़्तापलट को लेकर विदेश मंत्रालय ने एक नपा-तुला बयान जारी किया, वहीं म्यांमार से भारत आनेवाले शरणार्थियों की संख्या में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है.
भारत और म्यांमार के बीच 1600 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा रेखा है और सभी पर तारबंदी नहीं है. इस बीच मिज़ोरम सूबे से आवाज़ें उठ रही हैं कि भारत सरकार म्यांमार से आ रहे लोगों को वापिस भेजने में जल्दी न करे क्योंकि इससे उनकी जान को ख़तरा हो सकता है.
हालांकि भारत सरकार ने म्यांमार सीमा से लगे चार सूबों- अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर की सरकारों और सीमा सुरक्षाबलों से पड़ोसी मुल्क से आ रहे शरणार्थियों की पहचान कर उन्हें वापिस भेजने को कहा है. लेकिन दूसरी ओर म्यांमार में उपजे हालात के कारण वहां से लोगों का भारत आना लगातार जारी है.
अकेले मिज़ोरम में ही पिछले डेढ़ माह के भीतर म्यांमार से आए हज़ार से अधिक शरणार्थियों ने अलग-अलग गांवों और क़स्बों में पनाह ले रखी है.
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने म्यांमार की निर्वासित सरकार की विदेश मंत्री जिन मांग उंग से वर्चुअल बैठक की, जिसे भारतीय मीडिया ने ‘अनपेक्षित’ क़रार दिया क्योंकि भारत ने म्यांमार की निर्वासित सरकार को अभी तक मान्यता नहीं दी है.
इससे पहले ज़ोरमथंगा ने ख़बरों के मुताबिक़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर म्यांमारी शरणार्थियों को राहत पहुंचाने की बात कही थी. मिज़ोरम के राजनीतिज्ञ और दूसरे संगठन इस मामले में दिल्ली में भी सरकार से अलग-अलग स्तर पर बैठकें कर भारतीय सरकार के रूख़ में बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं.
मिज़ोरम के राज्य सभा सांसद के वनललवेना ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा है कि उन्होंने भारत सरकार के अधिकारियों से मुलाक़ातें की हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ‘हमने और मेरे साथियों ने इस मामले में भारत सरकार के दूसरे अधिकारियों से भी मुलाक़ातें की हैं. हम केंद्रीय गृह राज्य मंत्री से मिल चुके हैं, हमने केंद्रीय गृह सचिव से भी मामले में मुलाकात की है. हमने कल शाम ही विदेश मंत्रालय में म्यांमार मामलों की देखरेख कर रही संयुक्त सचिव से मुलाक़ात की है. हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार इस मामले में अपने रूख़ में बदलाव करेगी.’
म्यांमार में पहली फरवरी को हुए तख्तापलट के बाद भारत सरकार ने बयान जारी कर कहा था कि वहां के ताज़ा घटनाक्रम को लेकर वह चिंतित है और उम्मीद करती है कि क़ानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रहेगी. इस बीच दिल्ली के मिज़ोरम भवन में म्यांमार में जारी प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों के लिए शोक सभा का आयोजन हो रहा है.
मिज़ोरम के स्थानीय लोग और स्वंयसेवी संस्थाओं ने वहां से आए शरणार्थियों को भोजन, छत मुहैया करवाने जैसी मदद के अलावा उनके लिए चंदा भी इकट्ठा किया है.
म्यांमार से भागकर भारत आनेवाले लोगों में तक़रीबन ढेढ सौ से अधिक लोग वहां पुलिसकर्मी हुआ करते थे.
के वनललवेना ने बीबीसी से कहा है कि शरणार्थियों की लिस्ट बनाकर उन्हें मदद पहुंचाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, ‘पहली बात कि जो म्यांमार से आ रहे हैं उनके लिए शिविरों की स्थापना की जाए और उनकी हर तरह से मदद की जानी चाहिए, उन्हें भोजन और दूसरी सहायता दी जाए. हम चाहते हैं कि भारत सरकार इस मामले में खामोश न रहे और म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना के लिए और अधिक प्रयास करे.’
मिज़ोरम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में रहनेवाले एक ही जनजातीय समूहों से तालुक्क़ रखते हैं, दूसरी तरफ भारत सरकार की मुश्किल है कि उत्तर-पूर्व में सक्रिय कई उग्रवादी समूहों पर दबाव बनाने और उसके बड़े नेताओं की गिरफ्तारियों में म्यांमार कै सैन्य शासन ने भारत की पूर्व में कई दफा सहायता की है.
साथ ही साथ म्यांमार के चीन की तरफ झुकाव को लेकर भारत सरकार को पड़ोसी देश के साथ संबंधों फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है.