चुनाव प्रबंधक के तौर पर मशहूर प्रशांत किशोर के कांग्रेस में जाने की चर्चा ज़ोर-शोर से हो रही है लेकिन कोई नहीं जानता कि उनके इरादे क्या हैं?
साल 2014 में एक प्रोफ़ेशनल सलाहकार के तौर पर बीजेपी के चुनाव मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रशांत किशोर इन दिनों राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, और दूसरे विपक्षी नेताओं के साथ मुलाक़ातों को लेकर एक बार फिर चर्चा में हैं.
एक चुनावी रणनीतिकार के तौर एक बात प्रशांत किशोर को दूसरों से अलग करती है, वो ये है कि वे एक ‘पेड प्रोफ़ेशनल कंसल्टेंट’ के तौर पर अपनी सेवाएँ देते हैं, उनके पास एक पूरी रिसर्च टीम है और वे किसी एक राजनीतिक दल से बंधे नहीं हैं.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को मिली चुनावी जीत के बाद उनका रुतबा इन दिनों बढ़ा हुआ है क्योंकि तृणमूल कांग्रेस बीजेपी की चुनौती से कैसे निबटे, इस पर भी वे लगातार सलाह दे रहे थे, कुछ लोग मान रहे हैं कि उनकी सलाह ममता के काम आई.
बंगाल विधानसभा चुनाव से फारिग होते ही अब उनके कांग्रेस में शामिल होने के लेकर कयास भी लगाए जा रहे हैं. इसके ठीक पहले वे एक बार और चर्चा में थे जब उन्हें ‘विपक्षी एकता का सूत्रधार’ बताया जा रहा था, शरद पवार से उनकी मुलाक़ात को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं.
बिहार के भोजुपरी भाषी इलाके से ताल्लुक रखने वाले 44 वर्षीय प्रशांत किशोर अब तक नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, आंध्र प्रदेश में जगन रेड्डी और तमिलनाड़ु में डीएमके नेता एमके स्टालिन को अपनी प्रोफ़ेशनल सेवाएँ दे चुके हैं.
दो मई को 2021 को एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने यह कहकर सबको चौंका दिया कि वे अब पेशेवर राजनीतिक सलाहकार की भूमिका निभाना बंद कर रहे हैं, उनकी इस घोषणा के बाद यह अटकल और बढ़ गई कि वे शायद ख़ुद राजनीति में उतरना चाहते हैं.
वैसे वे राजनीति में हैं या नहीं, इसको लेकर हमेशा संशय का माहौल बना रहा है, अगर कोई व्यक्ति किसी पार्टी का उपाध्यक्ष रहा हो तो उसके बाद भी उसके राजनीति में होने को लेकर शक की क्या बात हो सकती है, लेकिन प्रशांत किशोर सियासत के कोच हैं या खिलाड़ी इसको लेकर स्थिति कभी साफ़ नहीं हो सकी.
ऐसे में कांग्रेस में उनके शामिल होने को लेकर जारी कयास से फिर वही सवाल उठ रहा है कि लोगों की नब्ज़ समझने का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियाँ क्यों एक ‘इलेक्शन मैनेजर’ को खुद से जोड़ने के लिए बेताब हैं.
यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि उन्होंने कांग्रेस-सपा गठबंधन के रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी और उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें बुरी तरह नाकामी का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा आम तौर पर उन्हें काफ़ी सफल चुनाव प्रबंधक माना जाता है.
बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी की भाजपा की कड़ी चुनौती के बावजूद जीत से प्रशांत किशोर का कद बढ़ा है और उनके हर क़दम का बारीकी से आकलन किया जाता है.
ऐसे में शरद पवार और कांग्रेस नेताओं से साथ मुलाकातों पर अनुमान लग रहे हैं कि वो 2024 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ विपक्ष को एकजुट करने की तैयारी कर रहे हैं.
मुंबई में लेखक और पत्रकार धवल कुलकर्णी को लगता है कि प्रशांत किशोर बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्ष को साथ लाने की मुहिम में जुटे हैं, हालाँकि भारतीय राजनीति में विपक्ष को साथ लाना टेढ़ी खीर रही है.
चेन्नई में वरिष्ठ पत्रकार डी सुरेश कुमार पूछते हैं, “अगर कोई ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाना चाहता है तो क्या दूसरे नेता तैयार होंगे? क्या शरद पवार इस पर विचार करेंगे? साल 2019 में भी हमने देखा कि हर गैर-एनडीए राजनीतिक दल का कहना था कि भाजपा को हटाने की ज़रूरत है लेकिन वो साथ नहीं आ पाए. सिर्फ़ स्टालिन ने कहा था कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे.”
एनडीटीवी से बातचीत में प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि उन्हें नहीं लगता कि तीसरा या चौथा मोर्चा भाजपा का मुक़ाबला कर सकता है.
विपक्ष को साथ लाने की सोच के तहत ये भी कयास लग रहे हैं कि प्रशांत किशोर शरद पवार को देश का अगला राष्ट्रपति बनवाने के सहमति जुटाने के मक़सद से नेताओं से मिल रहे हैं.
धवल कुलकर्णी के मुताबिक़ ऐसे में जब शरद पवार के लिए प्रधानमंत्री बनने का सपना धूमिल हो चला है, उनकी निगाहें अगले साल होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव पर हैं लेकिन अभी तक ये बातें मात्र कयास ही हैं क्योंकि शरद पवार ने इस पर कुछ नहीं कहा है.
प्रशांत किशोर की ज़रूरत क्यों?
चुनावी मैनेजरों का राजनीतिक पर्दे के पीछे काम विवादों से परे नहीं रहा है. उनका काम होता है चुनाव के समय नेता के आसपास एक ऐसा माहौल बनाना कि वो चुनाव में आगे निकल जाए, कहा जाता है कि मुद्दों, चुनावी क्षेत्रों के गणित और पब्लिक के मूड को भाँपने में वे माहिर हैं.
पंजाब में राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर जगरूप सैखों के मुताबिक प्रशांत किशोर जैसे चुनावी मैनेजरों की बढ़ती पैठ राजनीति के खोखले होते जाने का सबूत है.
वो कहते हैं, “ये राजनीतिक व्यवस्था, खासकर राजनीतिक दलों में दीवालियापन है, जब ताक़त कुछ लोगों को दे दी जाती है जो मैनेजरों की तरह काम करते हैं.”
डॉक्टर जगरूप सैखों के मुताबिक़ ये इस बात का भी परिचायक है कि आज के नेता किस तरह से ज़मीन से कटे हुए हैं और पंजाब में राजनेता इतने ज़्यादा बदनाम हैं कि कई लोग उन्हें अपने गांवों में घुसने तक नहीं देते.
बंगाल चुनाव के दौरान कोलकाता में बीबीसी संवाददाता अमिताभ भट्टासाली को टीएमसी नेताओं ने बताया कि किस तरह पिछले कुछ सालों में ज़मीनी भ्रष्टाचार की वजह से लोग पार्टी से कट गए थे.
प्रशांत किशोर ने ये बात नेताओं को बताई क्योंकि ममता बनर्जी के नज़दीकी लोग ये बातें ठीक से उनके सामने नहीं रख पाए थे.
अमिताभ बताते हैं कि प्रशांत किशोर किस तरह हर छोटी से छोटी चीज़ को खुद मैनेज करते थे, इसका उदाहरण ये है कि उनकी टीम के लोग इलाक़ों में घूमते रहते थे और किस नेता को कहाँ, क्या कहना है, ये बताते थे.
प्रशांत किशोर की देखरेख में बंगाल में लाखों की संख्या में ‘बांग्ला निजेर मेके चाय’, यानी ‘बांग्ला अपनी बेटी को चाहता है’ के लाखों पोस्टर लगाए गए.
इसके अलावा ‘दीदी को बोलो’ हेल्पलाइन कार्यक्रम शुरू हुआ जिससे लोग नल में पानी नहीं है, से लेकर गंदगी तक की शिकायत सीधे फ़ोन पर बताते थे जिस पर स्थानीय प्रशासन कार्रवाई करता था. ‘द्वारे सरकार’ के अंतर्गत इलाक़ों में लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए पब्लिक डिपार्टमेंट कैंप लगाते थे.
अमिताभ भट्टासाली के मुताबिक़ इन कार्यक्रमों से ममता बनर्जी के पक्ष में वोट खींचने में मदद मिली लेकिन इन कार्यक्रमों को सुझाने के लिए प्रशांत किशोर की ज़रूरत तो नहीं थी.
पत्रकार जयंत घोषाल कहते हैं, “प्रणब मुखर्जी मुझे बोलते थे कि कांग्रेस की हालत इसलिए ख़राब हो गई है क्योंकि ये ड्राइंगरूम पार्टी हो गई जिसकी वजह से वो आम लोगों से कट गई. एलियनेशन कहाँ है, किसका है, प्रशांत किशोर उसे स्टडी करते हैं. इस वजह से कई लोगों को टिकट नहीं मिलते.”
चेन्नई में पत्रकार डी सुरेश कुमार जयललिता का उदाहरण देते हैं जो सोशल मीडिया पर भी नहीं थीं लेकिन उनके पास आत्मविश्वास था और लोगों में उनके प्रति आकर्षण था, हालांकि वो कुछ चुनिंदा लोगों की मदद से ही शासन करती थीं.
वो कहते हैं, “जब नेताओं में आत्मविश्वास नहीं होता, जब उन्हें लगता है कि वो ख़ुद जीत हासिल नहीं कर सकते तब वो स्ट्रैटेजिस्ट का सहारा लेते हैं. साथ ही, नेता मानते हैं कि नरेंद्र मोदी सलाहकारों की मदद से इतने लोकप्रिय नेता बनकर उभरे हैं, लेकिन ये सच नहीं है.
एक रणनीतिकार भाषण लिख सकता है, लेकिन ये एक नेता होता है, जिस ज़बरदस्त अंदाज़ में भाषण देना होता है. एक स्पीकर के तौर पर नरेंद्र मोदी बहुत अच्छे हैं. लोगों को उनकी यह बात पसंद आती है.”
मुंबई में लेखक और पत्रकार धवल कुलकर्णी के मुताबिक़ प्रशांत किशोर जैसे कैंपेन मैनेजर दलों और नेताओं को बेहद ज़रूरी बड़ी तस्वीर से आगाह करवाते हैं. वो कहते हैं, “राजनीतिज्ञ हमेशा व्यस्त होते हैं और वो एक क़दम पीछे जाकर नहीं देख पाते कि क्या किया जाना चाहिए.”
प्रशांत किशोर की राजनीतिक आकांक्षाएं?
वरिष्ठ पत्रकार जयंत घोषाल को लगता है कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक आकांक्षाएं हैं और वो राज्यसभा सदस्य बनने तक सीमित नहीं हैं.
जयंत घोषाल कहते हैं, “प्रशांत किशोर साल 2024 के चुनाव में मिली-जुली सरकार के किंगमेकर बनना चाहते हैं.”
लेकिन घोषाल के मुताबिक़ इस बारे में बहुत कुछ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा, और उसके बाद ही उनके इरादे साफ़ पता चलेंगे.
प्रशांत किशोर की राजनीतिक मुलाक़ातें ऐसे वक्त हो रही हैं जब भारत में कोविड से मरने वालों की आधिकारिक संख्या चार लाख को पार कर गई है, कोविड से निपटने को लेकर कई मोदी समर्थक भी उनसे ख़ुश नहीं हैं, अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही है.
जयंत घोषाल कहते हैं, “प्रशांत किशोर किसी पार्टी में शामिल भी हो सकते हैं. उनके पास वो विकल्प है. वो चाहें तो राज्यसभा सांसद बन सकते हैं लेकिन वो राज्यसभा नहीं चाहते हैं.
घोषाल कहते हैं, “अभी तृणमूल की दो राज्यसभा सीटें ख़ाली हैं. भाजपा की ओर से भी उन्हें खींचने की कोशिश चल रही है क्योंकि उनके भाजपा के साथ भी रिश्ते बुरे नहीं हैं.”
उधर चेन्नई में वरिष्ठ पत्रकार डी सुरेश कुमार प्रशांत किशोर की विचारधारा पर सवाल उठाते हैं.कुमार कहते हैं, “वो एक चुनाव में एक दक्षिणपंथी पार्टी की तरफ़ थे. दूसरे चुनाव में एक दूसरी विचारधारा के पक्ष में. एक बार वो तमिल पार्टी की तरफ़ थे, एक दूसरे वक्त एक तेलगू पार्टी की तरफ़. अगर उन्हें नेता के तौर पर उभरना है तो उन्हें ज़मीन पर कड़ी मेहनत करनी होगी. उन्हें अपने आप को साबित करना होगा. वो किसी पार्टी में पैराशूट होकर नेता के तौर पर नहीं उभर सकते.”
प्रशांत किशोर पर सवाल भी कम नहीं
प्रशांत किशोर को लेकर सवाल उठते हैं कि जब वो इतने ही बड़े जादूगर हैं तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में उनके जादू ने काम क्यों नहीं किया?
ऐसे में उनके बचाव में एक जवाब आता है कि कांग्रेस ने उनकी बताई बातों पर अमल नहीं किया जिसके कारण पार्टी की ये दुर्दशा हुई.
इसके अलावा कई विश्लेषक मानते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत में प्रशांत किशोर के योगदान को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया.
उनका कहना है कि उस वक्त आम लोग कांग्रेस में कथित स्कैंडल, भ्रष्टाचार से वैसे ही इतना परेशान हो चुके थे कि उन्होंने देश की बागडोर
नरेंद्र मोदी के हाथों में सौंप दी, उसके लिए किसी प्रशांत किशोर की ज़रूरत नहीं थी.
पत्रकार डी सुरेश कुमार के मुताबिक़ तमिलनाडु में प्रशांत किशोर फ़ैक्टर के अलावा भी दूसरे कारण स्टालिन की जीत के लिए ज़िम्मेदार थे. वो कहते हैं कि जगन मोहन रेड्डी की जीत की एक वजह ये भी थी कि लोग चंद्रबाबू नायडू से ख़ुश नहीं थे.