भाजपा के नेता और यूपी में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ भाजपा का सीएम फ़ेस नहीं भी हो सकते हैं. आजतक से बातचीत में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा केंद्रीय नेतृत्त्व ही तय करेगा.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा,
“केंद्रीय नेतृत्त्व ही तय करेगा कि साल 2022 में मुख्यमंत्री कौन होगा. वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हो सकते हैं और कोई नया चेहरा भी हो सकता है. विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लग सकती है.”
अपने दावे को तर्क देते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने आगे कहा,
“साल 2017 में हमारे पास कोई चेहरा नहीं था. केंद्रीय नेतृत्त्व ने वो चेहरा (योगी) दिया. इस वजह से साल 2022 में भी केंद्रीय नेतृत्त्व तय करेगा कि वह चेहरा योगी आदित्यनाथ होंगे या फिर जीतने के बाद कोई नया होगा.”
इसके पहले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी इससे मिलता-जुलता बयान दिया था. पार्टी के अगले CM फ़ेस के बारे में पूछे जाने पर मौर्य ने कहा था कि ये उनका नहीं, बल्कि केंद्रीय नेतृत्त्व का विषय है.
यूपी समेत कई राज्यों में साल 2022 के शुरुआती महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. बैठकों का सिलसिला चालू है. कुछ दिनों पहले संगठन के नेता बीएल संतोष कुछ दिनों के दौरे पर लखनऊ आए थे. बहुत हल्ला हुआ था. उसके बाद यूपी में नियुक्तियां शुरू हुईं. आयोगों के चेयरमैन और सदस्य बनाए गए, तो भाजपा संगठन में भी नेताओं की नियुक्ति हुई. मोदी के क़रीबी MLC और पूर्व IAS अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा को मंत्रिमंडल में शामिल करने की ख़बरें चल रही थीं. सुगबुगाहट थी कि योगी आदित्यनाथ पर दबाव है कि अरविंद शर्मा को कार्मिक और गृह विभाग दिया जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अरविंद शर्मा सेटल हो गए भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष की पोस्ट पर.
और इसी सबके बीच योगी की बतौर CM प्रत्याशी, अर्हता पर सवाल उठने लगे. योगी आदित्यनाथ अमित शाह और नरेंद्र मोदी से मिले. केशव प्रसाद मौर्य ने तो सवाल उठा ही दिया था. फिर सीन में आए रक्षामंत्री और लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह. उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने अपने अब तक के कार्यकाल में बहुत अच्छा काम किया है. कोरोना संक्रमित रहते हुए भी योगी ने काम किया. उनके काम पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. विधानसभा चुनाव में योगी ही CM फ़ेस होंगे.
लेकिन राजनीति में समीकरण वोटिंग के ऐन पहले वाली रात को बदलते देखे गए हैं. ऐसे में 6-7 महीने पहले का ऐलान कितना टिकता है, ये समय के पेट में है. और जानकार तो कहते ही हैं, राजनीतिक अनिश्चितता का शमन करना ज़्यादा ज़रूरी है, फ़ैसले तो बाद में भी लिए जा सकते हैं.